Tuesday, 3 September 2019

Nathula, Sikkim

  नाथुला नहीं देखा तो क्या देखा 
नाथुला में 

गैंगटो क जाएं और नाथुला न जाए तो समझिए आपका जाना व्यर्थ,  इसलिए नहीं कि नाथुला कोई तीर्थ स्थल है वरन इसलिए की नाथुला लगभग 15,000 की ऊंचाइयों पर स्थित  इंडो - चाइना बार्डर है , जहां भारतीय सैनिक बारहों महीने सर्दी, गर्मी , बरसात में  हमारे देश को चाइना की बुरी नजर से बचाते है , उनकी साजिशों को नाकाम करते है, कड़कड़ाती ठंड में भी बंकरों में बैठ कर  गश्त देते है। और सबसे बड़ी बात कि वहां का तापमान हमेशा माई नेस पर रहता है और खबरों में छाया रहने वाला अत्यधिक विवादित स्थल डोकलाम नाथुला से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। 

 हम लोगो ने भी जब गंगटोक घूमने की योजना बनाई तो नाथुला को सबसे पहले प्राथमिकता दी। उसके बाद जोर - शोर से गूगल पर सीट आरक्षित कराने के लिए फास्ट  ट्रेनों  की  वर्तमान स्थिति पर युद्ध स्तर पर सर्च जारी कर दी। चूंकि मई महीने का अंतिम चरण  और बच्चों के स्कूल बंद होने के कारण सारी ट्रेनें पहले से ही आरक्षित हो चुकी थी। एक स्पेशल ट्रेन जो रात में जलपाई गुड़ी पहुंचती  उसमे सी टे खाली थी परंतु यहां समस्या थी अपने दो प्यारे सदस्यों  भोली और दृष्टा को ले जाने की क्योंकि   उन्हें किसी के भरोसे छोड़ कर जा नहीं सकते थे और ट्रेन में ले जाना उनके लिए   बहुत कष्टकारी होता। अतः हम लोगों ने टेंपो ट्रैवलर कोलकाता से गंगटोक  जाने और गंगटोक से कोलकाता वापसी तक के लिए बुक कर ली। अब हमारी 13 लोगो की ब्रिगेड जिसमें भोली व दृष्टा ( लेब्रा ) भी थी 28 मई को  दिन के ठीक 12 बजे सवार होकर चल दी।  खराब रास्ता और प्रचंड गर्मी ने ऐसी की हवा निकाल दी। जैसे तैसे दूसरे दिन प्रातः 5 बजे हम लोग सिलीगुड़ी पहुंच गए। वहां पहुंच कर राहत की सांस ली कि चलो अब अपने लक्ष्य से ज्यादा दूर नहीं। धूल धूसरित उनिंदा सिलीगुड़ी छोड़कर जैसे ही गंगटोक के रास्ते को पकड़ा हरी तिमा लिए हुए पहाड़ों ने स्वागत किया। गंगटोक मार्ग के प्रवेश द्वार के पास ही भ्रामरी देवी ( त्रिसोत्रा) मंदिर है और ये 52 शक्तिपीठों में से एक है। किन्तु प्रातः  5.30  मंदिर खुलने का समय न होने के कारण हम लोग दर्शन से वंचित हो गए।  ये पीड़ा हृदय में जगह बनाती की उससे पहले  लंबी लंबी उछाल मारती तीस्ता नदी के ऊपर बना बहुत ही आकर्षक कोरोनेशन ब्रिज पड़ा इसी ब्रिज के  बगल से गंगटोक जाने का रास्ता है  ब्रिज के ऊपर  से  असम  जाने का मार्ग है। अब तक हम लोगो की थकान पूर्ण रूप से गायब हो चुकी थी।  तीस्ता नदी  उछाले मारती हुई अब हमारे साथ साथ चल रही थी। पहाड़ों का मनोरम स्वरूप और तीस्ता की अठखेलियां हम लोगो के आकर्षण का केंद्र थी। समुद्री  तल से लगभग 6, 000( छः हजार ) फीट की ऊंचाई पर स्थित गंगटोक पहुंचने में हम लोगो को लगभग 5 ( पांच) घंटे लग गए परन्तु प्रकृति के दिव्य रूप ने हम सभी को अभिभूत कर रखा था।
गंगटोक में  बाहर की गाड़ियां शहर के अंदर नहीं जा सकती उन्हें बाहर की गाड़ियों के लिए बनाए गए चार तल्ले के पार्किंग जोन में अपनी गाड़ी खड़ी करनी होती है। हम लोगो ने वहां से टैक्सी पकड़ी और मुख्य मार्केट में स्थित होटल डेंजोंग में आ गए ये  तीन बड़े कमरों एक हॉल और किचेन के साथ सूट था। जिसे आर के हांडा जी (  सिक्किम के पूर्व डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस) ने मेरे आग्रह पर की छुट्टियों के सीजन में  कोई भी होटल  हमे अपने यहां कुत्तों को देखकर जगह नहीं देगा। व्यवस्था करवाई थी। होटल की बड़ी बड़ी खिड़कियों से ऊंचे ऊंचे पहाड़ों की सुंदरता अद्भुत दिखती थी। 

भोली एवं दृष्टा सफर का आनंद उठाते हुए 

  गंगटोक के मालरोड का बहुत नाम है, अतः शाम के समय हम लोगो ने माल रोड पर जाकर खरीददारी करने की सोची और बेटों ने नाथुला जाने के लिए ट्रैवल एजेंटों से बात करने की।  परन्तु इतना तेज पानी बरसने लगा कि खरीददारी की सारी योजना तीव्र गति से बरसते पानी में बह गई। बेटों ने बताया कि ट्रैवल एजेंट बता रहा है कि भोली ,दृष्टा कुत्ते होने के कारण नहीं जा सकते।  और नाथुला परमिट के लिए 3 हजार रूपये प्रति  गाड़ी का लेगा। एक बार फिर से नाथुला योजना धूमिल होती दिखने लगी। हमने फिर से हांडा जी से बात की और समस्या बताई उन्होंने कोलकाता में बैठ कर  ही हमारी समस्या का निदान कर दिया। और 30 - 31 मई गंगटोक घूमने के बाद  1 जून को हम लोग नाथुला के लिए रवाना हो गए। हमें बहुत ही खुशी हो रही थी कि ऐसे दुर्गम स्थल पर मेरे प्यारे बच्चे भोली दृष्टा मेरे साथ है। जाने वालों की काफी भीड़ थी लेकिन उनमें से अधिकतर चंगू लेक और बाबा मंदिर जाने वालों की थी। अभी हम लोग जी भर कर खुश भी नहीं हो पाए कि पता चला कि इस तंग रास्ते में  एक गाड़ी के  दुर्घटना ग्रस्त हो जाने के कारण लंबा जाम लग गया है। 
नाथुला  के रास्ते में एक गाड़ी के दुर्घटना ग्रस्त होने से लगा  लम्बा जाम 

वैसे भी पहाड़ी रास्ते में अक्सर  हिम स्खलन होने के चलते जाम लग जाता है। हम लोग भी गाड़ी से उतर कर भोली,  दृष्टा को घुमाने लगे। उन्हें देखने के लिए उनके साथ फोटो खींच वाने के लिए कई बच्चे व बड़े उनके पास आ गए।  अब तक जाम खुल चुका था सभी गाड़ी में बैठ कर उत्साहित मन के साथ जल्दी से जल्दी नाथुला पहुंचना चाह रहे थे। नाथुला से लगभग कुछ किलोमीटर पहले ही छोटी छोटी दुकानें थी जिनमें मैगी, मोमो, ब्रेड आमलेट आदि मिल रहा था साथ ही 100 रुपए प्रति भाड़े पर ऊनी कपड़े एवम् जूते।  उस  छोटी सी दुकान की  खिड़की से ऊंचे  - ऊंचे पहाड़ नजर आ रहे थे और एक पहाड़ी से गिरने वाला झरना अत्यंत मोहक लग रहा था हम लोगो ने बिना समय गंवाए उस सुंदरता को अपने कैमरे के हवाले कर दिया।  वहां से निकल कर सीधे हम लोग नाथुला पहुंचे। नाथुला पहुंचते ही मयनेस डिग्री टेंप्रेचर ने हम लोगों का स्वागत किया सर भारी लगने लगा लेकिन उस एहसास को हमने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया  क्योंकि हम जैसा सोचते है वैसा ही हमारा शरीर अनुभव करने लगता है। अब  हम सभी लोग इत्मीनान के साथ  उस जगह जा रहे थे जहां भारत और चाइना गेट आमने सामने है और उसे देखने के लिए वहां पहुंचने वाला प्रत्येक पर्यटक बेताब रहता है। रास्ते में बहुत सारे पर्यटक चढ़ाई चढ़ रहे थे  अधिकतर लोग कपूर रुमाल में लेकर बार - बार उसे सूंघते ताकि आक्सीजन की कमी शरीर में न हो जबकि कपूर  सूंघने से कुछ समय के लिए राहत मिल जाएगी परन्तु बाद में ये शरीर को नुक्सान पहुंचाता है। बहुत से पर्यटकों  के चेहरे पर  पहाड़ों की ऊंचाई  का डर नजर आ रहा था। तो कुछ कम उम्र के युवा बरफ में उतर कर फोटो खिचा रहे थे। गेट के पास पहुंचने पर देखा कि  सारे पर्यटक भारतीय है। ये  देखकर हमसे रहा नहीं गया और हमने वहां खड़े फौजी से सवाल किया कि चाईनीज पर्यटक क्यों नहीं दिख रहे है इस पर उसने जवाब दिया कि चाइना के निवासी बहुत कम नाथुला देखने आते है। लगभग 25 मिनट रुकने के बाद हम लोगो ने वापसी की तो देखा एक फौजी नाथुला घूमने वालों को सिग्नेचर किए हुए सर्टिफिकेट रुपए 70 लेकर दे रहा हैं और 250 का जय जवान 
  वाला कप जिस पर नाथुला गेट की पिक्चर छपी हुई थी। हम लोगो ने भी सर्टिफिकेट और कप लिया और केंटीन में काफी पीने बैठ गए। वहां हमारी मुलाकात एक लेफ्टिनेंट से हुई ,उसने बताया कि जब उसकी पोस्टिंग यहां हुई थी तो एक महीने तक दोनों समय मैगी खाकर काम चलाया।  फोन काम नहीं करता  किसी घरवाले से बात नहीं,  टीवी, रेडियो कुछ भी नहीं मै  लगभग पागल हो गया था। उससे डोकलाम विवाद  के बारे में  पूछने पर उसने कहां कि ये चीनी लोग बहुत बदमाश होते है जब तक इन्हे सभ्यता दिखाओ ये सर पर चढ़ते है जब हम लोगो ने इन्हे पीट दिया तो सुधर गए। हमने उससे दूसरा सवाल किया कि  तुम लेफ्टिनेंट हो और भी आर्मी अफसर होंगे। उसने जवाब दिया कि हां किन्तु यहां किसी को भी अपने रैंक को लगाकर रहने की इजाजत नहीं है। फिर पूछने पर की इस सुनसान स्थल पर मन लगाने की कुछ तो व्यवस्था की होगी तो उसने कहा हम लोग ऐसे ही खुश रहते है। हमने सवाल किया कि यहां सैकड़ों पर्यटक आते है वे कुछ  न कुछ सवाल भी करते होंगे कुछ ऐसे सवाल बताइए जो खीझ उत्पन्न करते हो। इस पर वो बोला आने वाले पर्यटक अधिकतर पूछते है कि चाइना गेट पर इतने झंडे लगे है जबकि भारत के गेट पर एक भी नहीं? अब उन्हें कौन समझाए कि चाइना का द्वार भारत के द्वार से कुछ उचाई पर है और हम लोग चाइना के नीचे । अपने झंडे लगाकर क्या हम अपने को चाइना से छोटा बताएंगे। कभी कोई पूछेगा अच्छा बताइए लेह लद्दाख की ऊंचाई कितनी है ? अब उन्हें कौन समझाए कि हम गूगल नहीं है, तुम हमसे नाथुला के बारे में पूछो। ऐसे सैकड़ों प्रश्न किए जाते है जिनका कोई सिर पैर नहीं होता।
 जैसे ही उतरने के लिए आगे बढ़े तो पूछा आप लोगों ने यहां की फोटो नहीं खींची इस पर हमने जवाब दिया की आपके फौजियों ने ऊपर कैमरा लाने के लिए मना किया था। ये सुनकर वो हंसने लगा और बोला हम लोग तो मना करेगे कैमरा भी छीनेगे क्योंकि आप लोग यहां की फोटो सोशल मीडिया में पोस्ट कर देते हो जिसकी यहां सख्ती से मनाही है।लेकिन बाद में  कैमरा दे देते है। उसने अपने मोबाइल से हम लोगो की कई फोटो खींची सेल्फी ली और मेरा नंबर भी ताकि वो हमें व्हाट्सअप पर भेज सके। हम लोगो ने सोचा  कि इसने हम लोगो की फोटो खींच कर हम सबको पोपट बनाया है किन्तु खुशी तब हुई जब उसने 15 दिन बाद हमें पिक्स भेज दी। एक बात जो हमें अच्छी लगी कि वो हमसे कुछ ज्यादा ही प्रभावित हो गया था  इस लिए मुझे मां कह कर संबोधित कर रहा था और हमें एक फौजी बेटे की मां बनने का गर्व महसूस हो रहा था।
नाथुला की झलकियां 












Monday, 28 May 2018

 द वेक हिंदी मासिक पत्रिका द्वारा आउट राम जेटी के गंगेश्वर मंदिर में गंगा दशहरा के उपलक्ष में भजन संध्या, गंगा आरती और दीपदान का आयोजन किया गया। भजन संध्या का आरंभ शोर्यांक ने रावण द्वारा रचित  शिव स्तुति "जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले " गाकर किया तत्पश्चात शुभ्रा त्रिवेदी ने "मानो तो मै गंगा मां हूं, गंगा मैया में जबतक कि पानी रहे " जैसे सुरीले गीत गाकर सबको मंत्र मुग्ध कर दिया। वहां उपस्थित श्रद्धालुओं, शालिनी डब्रिवाल, नीतू द्विवेदी, मंजू पोद्दार आदि ने भी भजन  गाकर इस पर्व के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की। मनोज त्रिवेदी व उनके साथ उपस्थित सभी भक्तों ने गंगा आरती  व दीपदान किया। हारमोनियम  पर साथ देने वाले उस्ताद फैयाज खान , तबले पर बाबू भाई व साबिर ने  गंगा आरती के बाद अपना रोजा खोल कर आपसी सोहार्द का परिचय दिया। इस अवसर पर उपस्थित थीं "शाकुन्तल कान्यकुब्ज महिला समिति "की अध्यक्षा शकुंतला तिवारी , रेखा बाजपेई, नीतू द्विवेदी, अमिता पुरोहित, जया दुबे, राजकुमारी कर्नानी, बनिश्री बाजोरिया, ऊषा चौधुरी,सुधा बाजपेई,ओम प्रकाश लड्ढा,  शुभ्रांशु, आभा तिवारी, राधा चौधूरी, राजेश बाजपेई , गणेश धनानिया आदि।कार्यक्रम को सफल बनाने में द वेक की संपादक शकुन त्रिवेदी एवम् राजेश मिश्रा की अहम भूमिका थी।
गंगा घाट पर आरती करते हुए मनोज त्रिवेदी ,शकुन त्रिवेदी व् अन्य



प्यासों   के लिए शरबत हाजिर है 

Wednesday, 11 October 2017

भारत का भविष्य २०१९

 भारत का  भविष्य २०१९  (संगोष्ठी )


द वेक हिंदी पत्रिका व् जनसंसार के संयुक्त तत्वाधान में एक संगोष्ठी भारत का भविष्य २०१९ राजनैतिक ,सामाजिक, आर्थिक  का आयोजन किया गया।  
विश्वहिंदू परिषद्  कोलकाता  के उपाध्यक्ष सर्वेश राय    के अनुसार सऊदी अरब में बहुत सी मस्जिद, मजार हटा के पार्क बनाये गये वहां किसी ने इसका विरोध नहीं किया हमे भी  इसी तर्ज पर मंदिर ,मस्जिद , मजार जो विकास के कार्य को प्रभावित कर रहे है उन्हें हटा कर स्कूल बनाने चाहिए।   
ओंकार बांग्ला चैनल के चेयरमेन प्रह्लाद राय गोयनका,  आजकल धार्मिक उन्माद चल रहा है एक -एक धार्मिक आयोजन में लाखों ,करोड़ों रूपये खर्चा होते है। एक -एक कार्ड पर तीन सौ लोगो के नाम छपे होते है।  इस तरह के आयोजन दिखावा मात्र है ना कि  लोगो तक ज्ञान पहुंचाने का माध्यमअगर इन पर रोक नहीं लगी तो भविष्य में इस तरह के आयोजनों पर और भी पैसे की बर्बादी होगी। देश में  आतंक का वातावरण बन रहा है जो की अच्छा नहीं है भविष्य में ऐसे तत्व आएंगे जो सिर्फ बम और बन्दूक की बात करेंगे। 
ओ. पी शाह ,अध्यक्ष सेंटर फार पीस एंड प्रोग्रेस , कश्मीर अब बदल रहा है वहां के नौजवान भाई -चारे के साथ सभी धर्मों के त्यौहार मनाना चाहते है ऐसी ही एक पहल दीवाली को लेकर की जा रही है जिसमे दूर दूर से लोगो को बुलाया जा रहा है। कश्मीरियों में विश्वास और सवांद केंद्र सरकार स्थापित करे तो कश्मीरी निवासी  भारत के अन्य प्रांतों के लोगो से जुड़ सकते है। कश्मीरियों को मिडिया से भी शिकायत है उनके अनुसार मिडिया कश्मीर की सही स्थिति नहीं दिखाती है। 
छपते -छपते के सम्पादक व् ताजा चैनल के डायरेक्टर बिशम्भर नेवर ने कहा समाज में मिडिया की अहम् भूमिका है लेकिन आज की मिडिया निष्पक्ष नहीं है।  आज कल मिडिया में बड़े -बड़े घराने  अपना पैसा लगा रहे वो लोग अपनी ही बात करेंगे. मिडिया भी राजनितिक खेमों में बट गया है। जो जिस खेमे का है वो उसी खेमें की बात करेगा।  सच्चाई क्या है ये बताने के लिए गिने चुने पत्रकार है। तथ्यों  के साथ कोई भी आंकड़े प्रस्तुत नहीं करना चाहता। मृणाल पांडे व् कुलदीप नैयर पूर्ण रूप से निष्पक्ष नहीं है  फिर भी  इनके लेख पढ़े जा सकते है। जनसत्ता दैनिक समाचार पत्र का सर्कुलेशन ज्यादा नहीं लेकिन उसके समाचार और लेख निष्पक्ष होते है।  
विजय ओझा -भाजपा पार्षद (४७ वार्ड कोलकाता), २०१९ में भी भाजपा का कोई विकल्प नहीं।  रही बात बढ़ रही गौ हिंसा , धार्मिक हिंसा तो ये सामयिक बुखार है। जी एस. टी से कार्य करने में असुविधा हुयी है ये मानते है लेकिन ये कोई  पहाड़  का पत्थर तो नहीं जो बदल नहीं सकता। जब हमारे संविधान में संशोधन  हो सकता है  तो  जी एस. टी में  भी  बदलाव होगा । नोटबंदी  साहसिक कदम। नकली नोटों का व्यापार ,नशे का कारोबार बंद हुआ। 
 इस कार्यक्रम के अध्यक्ष "इंडो- वियतनाम सॉलिडेरिटी कमिटी के प्रेसिडेंट व् प्रख्यात लेखक गीतेश शर्मा ने कहा की २०१९ में भी हिंदुत्व का मुद्दा छाया रहेगा , गौ रक्षा की हम बड़ी बड़ी बात करते है जबकि गोस्वामी तुलसी दास ने कहा है की " गौधन ,गजधन ,बाजधन और रतन धन खान,  जब आवे संतोष धन सब धन धूरि सामान। आप लोग गौ का दान करते है और उसे माता भी कहते है क्या कोई अपनी माता  का दान कर सकता है। गाय बेचने वाले को देशभक्त और काटने वाले को गुनहगार.  ८० % मुसलमान हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को बना कर रखता है।  भारत में चाईना से भगवान आ रहे है किसी ने इसका विरोध नहीं किया जबकि प्राण प्रतिष्ठा उसी भगवान् की होती है जो आपके देश की मिटटी से बने होते है। देश पीछे जा रहा है।  अर्थव्यवस्था ख़राब हो रही है।  कार्यक्रम के उपरांत प्रश्नोत्तर का दौर चला जो बहुत ही मजेदार था। उपरोक्त कार्यक्रम का सञ्चालन 'द  वेक ' पत्रिका की  सम्पादिका शकुन त्रिवेदी ने किया














धन्यवाद ज्ञापन  " द वेक" के प्रबंध संपादक मनोज त्रिवेदीने दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में शौर्यांक ,जयादूबे , जैस्मिन की अहम् भूमिका थी।  इस अवसर पर उपस्थित थे बिमल शर्मा ,रावेल पुष्प , प्रेम कपूर, कवियत्रि कुसुम जैन ,, सुनीता निगम ,सुधीर निगम, सीताराम अग्रवाल , जीवन सिंह आदि। 

Monday, 11 September 2017

हर्ष -उल्लास का त्यौहार दुर्गा पूजा






परंपरा, कला, कारीगरी, वैभव , हर्ष -उल्लास का त्यौहार दुर्गा पूजा एक बार फिर से दस्तक दे रहा  है। एक तरफ जहाँ टीवी चैनल बाढ़ की विभीषका बता  रहे है, बाढ़ से पीड़ित परिवारों की व्यथा कथा सुना रहे है , एक समय की रोटी के लिए तरसते हाथ दिखा रहे है वही दूसरी ओर  माँ दुर्गा का स्वागत खुले दिल से  करने के  लिए उसकी तैयारी पू रे -जोर शोर से चल रही है। बाजार अपने यौवन से लबरेज ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए रोज नए -नए हथकंडे अपना रहे है।  ग्राहक भी नौ दिन की तैयारी योजना बद्ध होकर कर रहे है। चार दिन ( सप्तमी ,अष्टमी ,नौमी ,दशमी ) क्या खाना ,क्या पहनना ,  कहा घूमना आदि।   जीएसटी का रोना रोते ( कुछ भी तो सस्ता नहीं है) ग्राहकों के मुंह का स्वाद  तब कसैला हो जा ता है जब उन्हें अपने बिल में अतिरिक्त कर जुड़ा दिखाई देता है। फिर भी उनके जोश में कोई कमी नहीं दिखती।  बंगाल की दुर्गा पूजा है ही ऐसी।  विभिन्न विषयों पर आधारित ,बेजोड़ कारीगरी से तराशे गए पंडाल, उत्कृष्ट कला को जीती प्रतिमाएं , अनेक  प्रकार के   रंगों एवं सुन्दर आकृतियों की छटा बिखेरती विद्युत् झालरे,  बरबस ही आने -जाने वालों का ध्यान आकर्षित कर लेती है।   किसका पंडाल ,किसकी मूर्ति ,किसकी विद्युत् सज्जा सर्वश्रेष्ठ है ये जानने के लिए बहुत से संगठन ,कम्पनिया, मिडिया पुरस्कार घोषित करती है।  सड़कों पर उमड़ती भीड़ रात की उपस्थिति को नकार देती है। बच्चें ,बड़े ,युवा सभी बेसब्री से इंतजार करते है इस त्यौहार का  किन्तु युवक -युवतियों की ख़ुशी की कोई सीमा नहीं होती क्योंकि इस दौरान उनकी घडी थम जाती है। नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते , लज्जा -मर्यादा  जैसी दकियानूसी सीमाओं को लांघते  स्वतंत्र ख्यालों वाले  युवक -युवतियां , बिना रोक -टोक देर रात तक डांडिया और दुर्गा पूजा का आनंद उठाते है।  एक बाईक पर तीन -चार लोगो का बैठ कर हुड़दंग मचाते हुए निकलते है  , लड़के -लड़कियों का समूह जहाँ -तहा खाता पीता ,घूमता दिखाई देता है। पाबंदी ,,भय ,अनुशासन सभी छुट्टी पर चले जाते है। ऐसे में आपराधिक तत्व भी सक्रिय हो जाते है।  गाड़ियों में बैठी महिलाओं पर अश्लील भद्दे फिकरे कसना , उनकी गाड़ियों का पीछा करना, कम उम्र की बच्चिंयों को छेड़ना उनका पसंदीदा गेम है हालाकिं पुलिस मुस्तैदी से तैनात रहती है परन्तु किस गली और नुक्कड़ पर ये सिरफिरे अपनी गन्दी योजनाओ को अंजाम देंगे ये किसे पता रहता है। आजकल ,टेक्सी ,बस ,ऑटो ,उबेर कुबेर किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता है अतः त्यौहार का मजा कही  किरकिरा न हो जाये इसलिए पहले से ही योजना बनाते समय इस बात पर अवश्य ध्यान दे की  आपकी सुरक्षा आपके हाथों में है।