Tuesday, 3 September 2019

Nathula, Sikkim

  नाथुला नहीं देखा तो क्या देखा 
नाथुला में 

गैंगटो क जाएं और नाथुला न जाए तो समझिए आपका जाना व्यर्थ,  इसलिए नहीं कि नाथुला कोई तीर्थ स्थल है वरन इसलिए की नाथुला लगभग 15,000 की ऊंचाइयों पर स्थित  इंडो - चाइना बार्डर है , जहां भारतीय सैनिक बारहों महीने सर्दी, गर्मी , बरसात में  हमारे देश को चाइना की बुरी नजर से बचाते है , उनकी साजिशों को नाकाम करते है, कड़कड़ाती ठंड में भी बंकरों में बैठ कर  गश्त देते है। और सबसे बड़ी बात कि वहां का तापमान हमेशा माई नेस पर रहता है और खबरों में छाया रहने वाला अत्यधिक विवादित स्थल डोकलाम नाथुला से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। 

 हम लोगो ने भी जब गंगटोक घूमने की योजना बनाई तो नाथुला को सबसे पहले प्राथमिकता दी। उसके बाद जोर - शोर से गूगल पर सीट आरक्षित कराने के लिए फास्ट  ट्रेनों  की  वर्तमान स्थिति पर युद्ध स्तर पर सर्च जारी कर दी। चूंकि मई महीने का अंतिम चरण  और बच्चों के स्कूल बंद होने के कारण सारी ट्रेनें पहले से ही आरक्षित हो चुकी थी। एक स्पेशल ट्रेन जो रात में जलपाई गुड़ी पहुंचती  उसमे सी टे खाली थी परंतु यहां समस्या थी अपने दो प्यारे सदस्यों  भोली और दृष्टा को ले जाने की क्योंकि   उन्हें किसी के भरोसे छोड़ कर जा नहीं सकते थे और ट्रेन में ले जाना उनके लिए   बहुत कष्टकारी होता। अतः हम लोगों ने टेंपो ट्रैवलर कोलकाता से गंगटोक  जाने और गंगटोक से कोलकाता वापसी तक के लिए बुक कर ली। अब हमारी 13 लोगो की ब्रिगेड जिसमें भोली व दृष्टा ( लेब्रा ) भी थी 28 मई को  दिन के ठीक 12 बजे सवार होकर चल दी।  खराब रास्ता और प्रचंड गर्मी ने ऐसी की हवा निकाल दी। जैसे तैसे दूसरे दिन प्रातः 5 बजे हम लोग सिलीगुड़ी पहुंच गए। वहां पहुंच कर राहत की सांस ली कि चलो अब अपने लक्ष्य से ज्यादा दूर नहीं। धूल धूसरित उनिंदा सिलीगुड़ी छोड़कर जैसे ही गंगटोक के रास्ते को पकड़ा हरी तिमा लिए हुए पहाड़ों ने स्वागत किया। गंगटोक मार्ग के प्रवेश द्वार के पास ही भ्रामरी देवी ( त्रिसोत्रा) मंदिर है और ये 52 शक्तिपीठों में से एक है। किन्तु प्रातः  5.30  मंदिर खुलने का समय न होने के कारण हम लोग दर्शन से वंचित हो गए।  ये पीड़ा हृदय में जगह बनाती की उससे पहले  लंबी लंबी उछाल मारती तीस्ता नदी के ऊपर बना बहुत ही आकर्षक कोरोनेशन ब्रिज पड़ा इसी ब्रिज के  बगल से गंगटोक जाने का रास्ता है  ब्रिज के ऊपर  से  असम  जाने का मार्ग है। अब तक हम लोगो की थकान पूर्ण रूप से गायब हो चुकी थी।  तीस्ता नदी  उछाले मारती हुई अब हमारे साथ साथ चल रही थी। पहाड़ों का मनोरम स्वरूप और तीस्ता की अठखेलियां हम लोगो के आकर्षण का केंद्र थी। समुद्री  तल से लगभग 6, 000( छः हजार ) फीट की ऊंचाई पर स्थित गंगटोक पहुंचने में हम लोगो को लगभग 5 ( पांच) घंटे लग गए परन्तु प्रकृति के दिव्य रूप ने हम सभी को अभिभूत कर रखा था।
गंगटोक में  बाहर की गाड़ियां शहर के अंदर नहीं जा सकती उन्हें बाहर की गाड़ियों के लिए बनाए गए चार तल्ले के पार्किंग जोन में अपनी गाड़ी खड़ी करनी होती है। हम लोगो ने वहां से टैक्सी पकड़ी और मुख्य मार्केट में स्थित होटल डेंजोंग में आ गए ये  तीन बड़े कमरों एक हॉल और किचेन के साथ सूट था। जिसे आर के हांडा जी (  सिक्किम के पूर्व डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस) ने मेरे आग्रह पर की छुट्टियों के सीजन में  कोई भी होटल  हमे अपने यहां कुत्तों को देखकर जगह नहीं देगा। व्यवस्था करवाई थी। होटल की बड़ी बड़ी खिड़कियों से ऊंचे ऊंचे पहाड़ों की सुंदरता अद्भुत दिखती थी। 

भोली एवं दृष्टा सफर का आनंद उठाते हुए 

  गंगटोक के मालरोड का बहुत नाम है, अतः शाम के समय हम लोगो ने माल रोड पर जाकर खरीददारी करने की सोची और बेटों ने नाथुला जाने के लिए ट्रैवल एजेंटों से बात करने की।  परन्तु इतना तेज पानी बरसने लगा कि खरीददारी की सारी योजना तीव्र गति से बरसते पानी में बह गई। बेटों ने बताया कि ट्रैवल एजेंट बता रहा है कि भोली ,दृष्टा कुत्ते होने के कारण नहीं जा सकते।  और नाथुला परमिट के लिए 3 हजार रूपये प्रति  गाड़ी का लेगा। एक बार फिर से नाथुला योजना धूमिल होती दिखने लगी। हमने फिर से हांडा जी से बात की और समस्या बताई उन्होंने कोलकाता में बैठ कर  ही हमारी समस्या का निदान कर दिया। और 30 - 31 मई गंगटोक घूमने के बाद  1 जून को हम लोग नाथुला के लिए रवाना हो गए। हमें बहुत ही खुशी हो रही थी कि ऐसे दुर्गम स्थल पर मेरे प्यारे बच्चे भोली दृष्टा मेरे साथ है। जाने वालों की काफी भीड़ थी लेकिन उनमें से अधिकतर चंगू लेक और बाबा मंदिर जाने वालों की थी। अभी हम लोग जी भर कर खुश भी नहीं हो पाए कि पता चला कि इस तंग रास्ते में  एक गाड़ी के  दुर्घटना ग्रस्त हो जाने के कारण लंबा जाम लग गया है। 
नाथुला  के रास्ते में एक गाड़ी के दुर्घटना ग्रस्त होने से लगा  लम्बा जाम 

वैसे भी पहाड़ी रास्ते में अक्सर  हिम स्खलन होने के चलते जाम लग जाता है। हम लोग भी गाड़ी से उतर कर भोली,  दृष्टा को घुमाने लगे। उन्हें देखने के लिए उनके साथ फोटो खींच वाने के लिए कई बच्चे व बड़े उनके पास आ गए।  अब तक जाम खुल चुका था सभी गाड़ी में बैठ कर उत्साहित मन के साथ जल्दी से जल्दी नाथुला पहुंचना चाह रहे थे। नाथुला से लगभग कुछ किलोमीटर पहले ही छोटी छोटी दुकानें थी जिनमें मैगी, मोमो, ब्रेड आमलेट आदि मिल रहा था साथ ही 100 रुपए प्रति भाड़े पर ऊनी कपड़े एवम् जूते।  उस  छोटी सी दुकान की  खिड़की से ऊंचे  - ऊंचे पहाड़ नजर आ रहे थे और एक पहाड़ी से गिरने वाला झरना अत्यंत मोहक लग रहा था हम लोगो ने बिना समय गंवाए उस सुंदरता को अपने कैमरे के हवाले कर दिया।  वहां से निकल कर सीधे हम लोग नाथुला पहुंचे। नाथुला पहुंचते ही मयनेस डिग्री टेंप्रेचर ने हम लोगों का स्वागत किया सर भारी लगने लगा लेकिन उस एहसास को हमने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया  क्योंकि हम जैसा सोचते है वैसा ही हमारा शरीर अनुभव करने लगता है। अब  हम सभी लोग इत्मीनान के साथ  उस जगह जा रहे थे जहां भारत और चाइना गेट आमने सामने है और उसे देखने के लिए वहां पहुंचने वाला प्रत्येक पर्यटक बेताब रहता है। रास्ते में बहुत सारे पर्यटक चढ़ाई चढ़ रहे थे  अधिकतर लोग कपूर रुमाल में लेकर बार - बार उसे सूंघते ताकि आक्सीजन की कमी शरीर में न हो जबकि कपूर  सूंघने से कुछ समय के लिए राहत मिल जाएगी परन्तु बाद में ये शरीर को नुक्सान पहुंचाता है। बहुत से पर्यटकों  के चेहरे पर  पहाड़ों की ऊंचाई  का डर नजर आ रहा था। तो कुछ कम उम्र के युवा बरफ में उतर कर फोटो खिचा रहे थे। गेट के पास पहुंचने पर देखा कि  सारे पर्यटक भारतीय है। ये  देखकर हमसे रहा नहीं गया और हमने वहां खड़े फौजी से सवाल किया कि चाईनीज पर्यटक क्यों नहीं दिख रहे है इस पर उसने जवाब दिया कि चाइना के निवासी बहुत कम नाथुला देखने आते है। लगभग 25 मिनट रुकने के बाद हम लोगो ने वापसी की तो देखा एक फौजी नाथुला घूमने वालों को सिग्नेचर किए हुए सर्टिफिकेट रुपए 70 लेकर दे रहा हैं और 250 का जय जवान 
  वाला कप जिस पर नाथुला गेट की पिक्चर छपी हुई थी। हम लोगो ने भी सर्टिफिकेट और कप लिया और केंटीन में काफी पीने बैठ गए। वहां हमारी मुलाकात एक लेफ्टिनेंट से हुई ,उसने बताया कि जब उसकी पोस्टिंग यहां हुई थी तो एक महीने तक दोनों समय मैगी खाकर काम चलाया।  फोन काम नहीं करता  किसी घरवाले से बात नहीं,  टीवी, रेडियो कुछ भी नहीं मै  लगभग पागल हो गया था। उससे डोकलाम विवाद  के बारे में  पूछने पर उसने कहां कि ये चीनी लोग बहुत बदमाश होते है जब तक इन्हे सभ्यता दिखाओ ये सर पर चढ़ते है जब हम लोगो ने इन्हे पीट दिया तो सुधर गए। हमने उससे दूसरा सवाल किया कि  तुम लेफ्टिनेंट हो और भी आर्मी अफसर होंगे। उसने जवाब दिया कि हां किन्तु यहां किसी को भी अपने रैंक को लगाकर रहने की इजाजत नहीं है। फिर पूछने पर की इस सुनसान स्थल पर मन लगाने की कुछ तो व्यवस्था की होगी तो उसने कहा हम लोग ऐसे ही खुश रहते है। हमने सवाल किया कि यहां सैकड़ों पर्यटक आते है वे कुछ  न कुछ सवाल भी करते होंगे कुछ ऐसे सवाल बताइए जो खीझ उत्पन्न करते हो। इस पर वो बोला आने वाले पर्यटक अधिकतर पूछते है कि चाइना गेट पर इतने झंडे लगे है जबकि भारत के गेट पर एक भी नहीं? अब उन्हें कौन समझाए कि चाइना का द्वार भारत के द्वार से कुछ उचाई पर है और हम लोग चाइना के नीचे । अपने झंडे लगाकर क्या हम अपने को चाइना से छोटा बताएंगे। कभी कोई पूछेगा अच्छा बताइए लेह लद्दाख की ऊंचाई कितनी है ? अब उन्हें कौन समझाए कि हम गूगल नहीं है, तुम हमसे नाथुला के बारे में पूछो। ऐसे सैकड़ों प्रश्न किए जाते है जिनका कोई सिर पैर नहीं होता।
 जैसे ही उतरने के लिए आगे बढ़े तो पूछा आप लोगों ने यहां की फोटो नहीं खींची इस पर हमने जवाब दिया की आपके फौजियों ने ऊपर कैमरा लाने के लिए मना किया था। ये सुनकर वो हंसने लगा और बोला हम लोग तो मना करेगे कैमरा भी छीनेगे क्योंकि आप लोग यहां की फोटो सोशल मीडिया में पोस्ट कर देते हो जिसकी यहां सख्ती से मनाही है।लेकिन बाद में  कैमरा दे देते है। उसने अपने मोबाइल से हम लोगो की कई फोटो खींची सेल्फी ली और मेरा नंबर भी ताकि वो हमें व्हाट्सअप पर भेज सके। हम लोगो ने सोचा  कि इसने हम लोगो की फोटो खींच कर हम सबको पोपट बनाया है किन्तु खुशी तब हुई जब उसने 15 दिन बाद हमें पिक्स भेज दी। एक बात जो हमें अच्छी लगी कि वो हमसे कुछ ज्यादा ही प्रभावित हो गया था  इस लिए मुझे मां कह कर संबोधित कर रहा था और हमें एक फौजी बेटे की मां बनने का गर्व महसूस हो रहा था।
नाथुला की झलकियां 












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