Tuesday, 28 February 2017

शादी और बच्चे महिला सशक्तिकरण में बाधक ? " .

               गंभीर ज्वलंत समस्या पर एक सारगर्भित संगोष्ठी 'द  वेक' हिंदी मासिक पत्रिका व ताजा चैनल के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित की गयी।   डॉ.  सूफिया यास्मीन ( प्रोफेसर )  कहा कि  सुश्री निवेदिता प्रसाद , ( डिप्टी कमिशनर इन्कमटेक्स ) डॉ. शिवली मुख़र्जी ( टेस्टट्यूब बेबी एक्सपर्ट ) डॉ. मंजुला सिंह ( प्रतिष्ठित समाज सेवी)  सुवसमिता डे ( क्रिमनल लॉयर ) आशीष बसाक (फिल्म मेकर ) विशम्भर नेवर ( डायरेक्टर ताजा चैनेल ) डॉ. करुणा पण्डे , लेखिका , अपनी और से सार्थक पहल करते हुए इस मुद्दे पर रौशनी डालने की कोशिश की।  

प्रसन्न मुद्रा में वक्ता 

प्रोफेसर सूफिया यास्मीन के अनुसार लोकल ट्रैन में सब्जी,फल, बेचने वाली महिलाये इस लिए काम करती है क्योकि उन्हें अपने शराबी पति को पैसे देने पड़ते है दारू पीने के लिए।  घर चलाने से लेकर बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी इन्ही महिलाओं के ऊपर होती है।  ऐसे पुरुष जो दारू पीकर मार -पीट करे तो कौन महिला चाहेगी की वो अपने पति के साथ रहे। यही नहीं ऐसी बहुत सी शिक्षकाएं है जो कालेज आने के पहले ससुराल वालो के लिए खाना बना कर आती है क्योंकि उनके सास-ससुर को बाहर का खाना  पसंद नहीं है और कालेज से घर वापस जाकर बच्चों को ट्यूशन के लिए लेकर जाती है।  अगर कभी  नैक का कालेज विजिट रविवार को  पड़ जाता है तो हम शिक्षकाओं को कालेज जाना पड़ता है ऐसे में ससुराल वाले ताना मारते है की ऐसा कौनसा कालेज है जो रविवार के दिन भी खुलता है।   मशीन बनी ये महिलाये शादी करके पछता  रही है। 


  • निवेदिता प्रसाद , इनकम टैक्स  कमिशनर , हमारे समाज में शादी आवश्यक है ऐसा सब मानते है क्योंकि सबको लगता है अगर शादी नहीं हुयी तो आपकी जिंदगी का कोई मतलब ही नहीं है।  कैरियर को दूसरे नंबर पर रखा जाता है।  लड़की के पैदा होते  ही शादी करनी है का राग अलापना आरम्भ हो जाता है जबकि शादी महिलाओं को असुरक्षा वाला माहौल देती है अपमान ,डांट -फटकार  मारपीट ,आदि।   शादी के बाद बहुत कम महिलाये ही निर्णय ले पाती इसलिए नहीं की उनमे क्षमता नहीं है बल्कि इसलिए की उन्हें अहमियत ही नहीं दी जाती किसी भी विषय में अपनी राय देने की।  देखा जाये तो उनके व्यक्तित्व को एक तरीके से ख़त्म कर दिया जाता है। उसी जगह लड़के को बचपन से ही नौकरी करनी है कह के प्रोत्साहित किया जाता है। ज्यादा पढ़ी -लिखी लड़कियों के साथ शादी करना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें वे दबा कर नहीं रख सकते। परिवार और बच्चो की देख -रेख के कारण अच्छे जॉब वाली महिलाये भी तरक्की के अच्छे अवसर हाथ से जाने देती है क्योंकि वे इतना समय नहीं दे सकती। 

  • डॉ. मंजुला सिंह , दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर के रूप में शुरुआत की , अठ्ठाइस वर्षो से शादी शुदा हूँ और  अब तक आठ नौकरी छोड़ चुकी हूँ मुझे कभी नहीं लगा की शादी  महिला  सशक्तिकरण में बाधा है क्योंकि ये आप पर निर्भर करता है की जिसे आप जीवन साथी बना रही है वो कैसा है। आपकी सोच के अनुसार है या सोच के विपरीत। दूसरी अहम् बात की  प्रजनन एक महिला ही कर सकती है अतः ये उसे ही तय करना है की वो बच्चें कब पैदा करे और उन्हें कैसा माहौल दे । वो बच्चे को जैसा माहौल देगी वे वैसे ही होंगे  अगर घर में मारपीट का माहौल है तो वे यही आगे भी करेंगे क्योंकि उनके लिए जीवन ऐसे ही जिया जाता है। सबसे पहले सोच की बेडिंया काटे और घर के पुरुषों को पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता से निका ले। शादी करने का मतलब ये बिलकुल नहीं की महिला ही समस्त कार्य करे पुरुष को भी हाथ बटाना चाहिए।
  • आशीष बसाक ,फिल्म निर्देशक , लड़कियों को चुनना होगा की वे शादी चाहती है या कॅरियर।  क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री में जब तक हीरोइन शादी नहीं करती तब तक उसका कॅरियर ठीक रहता है जैसे ही शादी करलेती है उसका कॅरियर ढलान पर चला जाता है।  इसका मतलब ये बिलकुल नहीं की शादी न की जाये।  अधिकतर लडकिया शादी ही करती है क्योकि सभी महत्वकांक्षी नहीं होती लेकिन जो जिंदगी में कुछ हासिल करना चाहती पहले वे अपने लक्ष्य को हासिल करे तत्पश्चात शादी करे क्योंकि शादी मतलब जिम्मेदारी. 



  • सुवसमिता डे ,आपराधिक वकील , पुरुष प्रधान समाज ही महिलाओं का शोषण करते है ,वे  बर्दाश्त नही करते की उनकी बीबी  उनसे  आगे निकल जाये। क्योंकि उनकी परवरिश ही इसी प्रकार से होती है।  उन्हें समझाया जाता है की अगर बीबी उनसे ज्यादा योग्य होगी तो वो तुम्हारी गुलामी नहीं करेगी। जरुरत है हमारे समाज में बेटे -बेटी के प्रति अलग -अलग बनी हुयी मानसिकता को  बदलने की।  हमारे समाज में छोटी सी छोटी बात के लिए भी बेटे से या पति से पूछा जाता है घर की धुरी पुरुष के ही चारो तरफ घूमती है क्योंकि वो कमाता है जबकि उसी जगह महिला अपना परिवार समझ कर मशीन की तरह से कार्य करती है।  जो महिलाये अपने दम पर कुछ करती है तो उनके बारे में गलत धारणा बना ली जाती है।  जैसे की मैं क्रिमिनल वकील हूँ तो सबको  लगता है की इसका तो पुलिस वालो के साथ उठना बैठना होता है तो जरूर चरित्र ख़राब होगा। उनकी सोच की अगर हम परवाह करेगे तो आगे कैसे बढेंगे सबसे पहले सशक्तिकरण हमारे अंदर होना चाहिए। बहुत सी महिलाये अपने पति की मार इस लिए  खाती  है की अगर उनका पति उन्हें छोड़ देंगा तो वो कैसे रहेगी। सुरक्षा  के लिए एक मर्द तो साथ चाहिए. लेकिन वे ये भूल जाती है की बच्चे जो हिंसा देख रहे है कल को यही  हिंसा उन्हें स्वस्थ जीवन  जीने नहीं देगी। लोग अक्सर दोष देते है की महिलाये 498 का गलत फायदा उठा रही है तो सीधी सी बात है  अगर किसी को मिर्ची का पाउडर दे दे तो ये उसपर निर्भर करेगा की वो खाने में डाले या आँख में।
  • विशम्भर नेवर, डायरेक्टर ताजा चैनल , युधिष्ठर जब निराश होकर संन्यास लेने लगे तो वहां  उपस्थित सन्यासी ने कहा की " सन्यास लेना कायरता है सच्चा मनुष्य वही है जो जीवन में उपजी समस्याओं को सुलझाए. " जिस तरह एक सिक्के को दो पहलु होते है उसी प्रकार प्रत्येक बात के भी दो पहलु होते है।  डिवोर्स आया सभी ने कहा की बहुत गलत है लेकिन ये नही सोचा की महिलाओं पर शादी के बाद कितने अत्याचार होते थे।  ऐसे ही राजस्थान में पहले हवेलियां हुआ करती थी उन हवेलियों में एक कमरा गन्दा रखा जाता था जिसकी साफ -सफाई कभी होती ही नहीं थी क्योंकि वहां महिलाओं का प्रसव करवाया जाता था और वो प्रसव दइया करवाती थी।  जब डाक्टरो द्वारा प्रसव कराया जाने लगा तो लोगो ने बड़ी आलोचना की।  पुरुष को लगता है की औरत को बच्चा चाहिए औरत को लगता है बिना बच्चे के वो पूर्ण नहीं है उसकी इस कमजोरी का वो शोषण करता है समस्याएं बाहर से नहीं आयी है वरन वे हमारे बीच से ही उत्पन्न हुयी है इसलिए इनका समाधान हमें ही निकलना है।  परिवार कभी बाधा नहीं होता बाधा उस परिवार की सोच हो सकती है। जब कभी समाज में परिवर्तन आता है तो आलोचनाएं -समालोचनाएँ होती ही है धीरे -धीरे सभी इसके आदि हो जाते है।
  • डॉ. शिवली मुखर्जी , अपनी  डिग्रियों को लेने के लिए हमे बहुत मेहनत करनी पड़ी किन्तु मेरी मम्मी ने मेरी डिग्री देखते ही हाथ खड़े कर दिए की तुम्हारे लिए मैं लड़का नहीं खोज सकती मैंने सोचा चलो मैं ही देखती हूँ अपने स्तर के अनुसार एक जगह बात भी बनी किन्तु जब लड़के के माता - पिता ने देखा तो उन्हें लगा की ये लड़की कम लड़का ज्यादा है।  मुझे भी लगा की शादी कही न कही मेरे लिए बंधन साबित होने वाली है इसलिए अपने प्रोफेशन को बनाये रखने के लिए मैंने शादी का इरादा छोड़ दिया। दूसरी बात जो  मेरे दिल में दर्द बन कर बस गई थी वो ये थी की मेरी माँ शादी से पहले बहुत अच्छा गाती थी  और शादी के बाद उन की हॉबी ने घर -गृहस्थी के चलते दम तोड़ दिया। सरोगेसी और टेस्टट्यूब बेबी पैदा करवाना मेरा पेशा है। मैंने अक्सर देखा है की बच्चा हमेशा महिला चाहती है वही बच्चे के लिए आती है और बच्चे का सारा खर्च  लड़की के माता- पिता उठाते है कभी भी लड़के के परिवार वाले पहल नहीं करते।  इस लिए मेरा मानना है की शादी और कैरियर में से किसी एक को ही चुना जा सकता है अतः ये महिला पर ही निर्भर करता है की वो क्या चाहती है 
शकुन त्रिवेदी ,संपादक 'द  वेक' हिंदी मासिक पत्रिका विशम्भर नेवर डायरेक्टर ताजा चैनल , 

शुभ्र त्रिवेदी गाना गाती हुयी 

DR. SHIULI MUKHERJEE WITH DR. KARUNA PANDE WRITER.

SUVASMITA DE (ADVOCATE) WITH RICHA TRIVEDI

च ये है की नारी के हिस्से में आज भी चुभन, टूटन, तड़पन, और बिखरन है।  वो बच्चे को आया के सहारे छोड़ कर जाती है तो भी कुंठा ग्रस्त होती है।  घर की चहारदीवारी में कैद होकर श्रीमती और मम्मी के रूप में  अपनी पहचान उनके नाम से बना कर भी खोखली ही रहती है। उनके सामने विकल्प के रूप में कुछ भी नहीं है या तो वे कॅरियर चुने या शादी।  दोनों के साथ जीवन यापन करना महिला को रोबोट बना देता है ऐसी स्थिति में इस समस्या का हल  क्या है क्या होना चाहिए , आवश्यकता है इस पर गंभीरता के साथ विचार करने की क्योंकि शादी के बिना  भी महिलाये   अधूरी है और शादी कर के भी बहुत सी महिलाएं बिखरी हुयी है। इस कार्यक्रम का सञ्चालन 'द वेक' हिंदी मासिक पत्रिका की संपादक शकुन त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम् भूमिका निभाई शुभ्रा त्रिवेदी, राजेश मिश्रा  जैस्मिन खान .

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