Wednesday, 11 October 2017

भारत का भविष्य २०१९

 भारत का  भविष्य २०१९  (संगोष्ठी )


द वेक हिंदी पत्रिका व् जनसंसार के संयुक्त तत्वाधान में एक संगोष्ठी भारत का भविष्य २०१९ राजनैतिक ,सामाजिक, आर्थिक  का आयोजन किया गया।  
विश्वहिंदू परिषद्  कोलकाता  के उपाध्यक्ष सर्वेश राय    के अनुसार सऊदी अरब में बहुत सी मस्जिद, मजार हटा के पार्क बनाये गये वहां किसी ने इसका विरोध नहीं किया हमे भी  इसी तर्ज पर मंदिर ,मस्जिद , मजार जो विकास के कार्य को प्रभावित कर रहे है उन्हें हटा कर स्कूल बनाने चाहिए।   
ओंकार बांग्ला चैनल के चेयरमेन प्रह्लाद राय गोयनका,  आजकल धार्मिक उन्माद चल रहा है एक -एक धार्मिक आयोजन में लाखों ,करोड़ों रूपये खर्चा होते है। एक -एक कार्ड पर तीन सौ लोगो के नाम छपे होते है।  इस तरह के आयोजन दिखावा मात्र है ना कि  लोगो तक ज्ञान पहुंचाने का माध्यमअगर इन पर रोक नहीं लगी तो भविष्य में इस तरह के आयोजनों पर और भी पैसे की बर्बादी होगी। देश में  आतंक का वातावरण बन रहा है जो की अच्छा नहीं है भविष्य में ऐसे तत्व आएंगे जो सिर्फ बम और बन्दूक की बात करेंगे। 
ओ. पी शाह ,अध्यक्ष सेंटर फार पीस एंड प्रोग्रेस , कश्मीर अब बदल रहा है वहां के नौजवान भाई -चारे के साथ सभी धर्मों के त्यौहार मनाना चाहते है ऐसी ही एक पहल दीवाली को लेकर की जा रही है जिसमे दूर दूर से लोगो को बुलाया जा रहा है। कश्मीरियों में विश्वास और सवांद केंद्र सरकार स्थापित करे तो कश्मीरी निवासी  भारत के अन्य प्रांतों के लोगो से जुड़ सकते है। कश्मीरियों को मिडिया से भी शिकायत है उनके अनुसार मिडिया कश्मीर की सही स्थिति नहीं दिखाती है। 
छपते -छपते के सम्पादक व् ताजा चैनल के डायरेक्टर बिशम्भर नेवर ने कहा समाज में मिडिया की अहम् भूमिका है लेकिन आज की मिडिया निष्पक्ष नहीं है।  आज कल मिडिया में बड़े -बड़े घराने  अपना पैसा लगा रहे वो लोग अपनी ही बात करेंगे. मिडिया भी राजनितिक खेमों में बट गया है। जो जिस खेमे का है वो उसी खेमें की बात करेगा।  सच्चाई क्या है ये बताने के लिए गिने चुने पत्रकार है। तथ्यों  के साथ कोई भी आंकड़े प्रस्तुत नहीं करना चाहता। मृणाल पांडे व् कुलदीप नैयर पूर्ण रूप से निष्पक्ष नहीं है  फिर भी  इनके लेख पढ़े जा सकते है। जनसत्ता दैनिक समाचार पत्र का सर्कुलेशन ज्यादा नहीं लेकिन उसके समाचार और लेख निष्पक्ष होते है।  
विजय ओझा -भाजपा पार्षद (४७ वार्ड कोलकाता), २०१९ में भी भाजपा का कोई विकल्प नहीं।  रही बात बढ़ रही गौ हिंसा , धार्मिक हिंसा तो ये सामयिक बुखार है। जी एस. टी से कार्य करने में असुविधा हुयी है ये मानते है लेकिन ये कोई  पहाड़  का पत्थर तो नहीं जो बदल नहीं सकता। जब हमारे संविधान में संशोधन  हो सकता है  तो  जी एस. टी में  भी  बदलाव होगा । नोटबंदी  साहसिक कदम। नकली नोटों का व्यापार ,नशे का कारोबार बंद हुआ। 
 इस कार्यक्रम के अध्यक्ष "इंडो- वियतनाम सॉलिडेरिटी कमिटी के प्रेसिडेंट व् प्रख्यात लेखक गीतेश शर्मा ने कहा की २०१९ में भी हिंदुत्व का मुद्दा छाया रहेगा , गौ रक्षा की हम बड़ी बड़ी बात करते है जबकि गोस्वामी तुलसी दास ने कहा है की " गौधन ,गजधन ,बाजधन और रतन धन खान,  जब आवे संतोष धन सब धन धूरि सामान। आप लोग गौ का दान करते है और उसे माता भी कहते है क्या कोई अपनी माता  का दान कर सकता है। गाय बेचने वाले को देशभक्त और काटने वाले को गुनहगार.  ८० % मुसलमान हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को बना कर रखता है।  भारत में चाईना से भगवान आ रहे है किसी ने इसका विरोध नहीं किया जबकि प्राण प्रतिष्ठा उसी भगवान् की होती है जो आपके देश की मिटटी से बने होते है। देश पीछे जा रहा है।  अर्थव्यवस्था ख़राब हो रही है।  कार्यक्रम के उपरांत प्रश्नोत्तर का दौर चला जो बहुत ही मजेदार था। उपरोक्त कार्यक्रम का सञ्चालन 'द  वेक ' पत्रिका की  सम्पादिका शकुन त्रिवेदी ने किया














धन्यवाद ज्ञापन  " द वेक" के प्रबंध संपादक मनोज त्रिवेदीने दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में शौर्यांक ,जयादूबे , जैस्मिन की अहम् भूमिका थी।  इस अवसर पर उपस्थित थे बिमल शर्मा ,रावेल पुष्प , प्रेम कपूर, कवियत्रि कुसुम जैन ,, सुनीता निगम ,सुधीर निगम, सीताराम अग्रवाल , जीवन सिंह आदि। 

Monday, 11 September 2017

हर्ष -उल्लास का त्यौहार दुर्गा पूजा






परंपरा, कला, कारीगरी, वैभव , हर्ष -उल्लास का त्यौहार दुर्गा पूजा एक बार फिर से दस्तक दे रहा  है। एक तरफ जहाँ टीवी चैनल बाढ़ की विभीषका बता  रहे है, बाढ़ से पीड़ित परिवारों की व्यथा कथा सुना रहे है , एक समय की रोटी के लिए तरसते हाथ दिखा रहे है वही दूसरी ओर  माँ दुर्गा का स्वागत खुले दिल से  करने के  लिए उसकी तैयारी पू रे -जोर शोर से चल रही है। बाजार अपने यौवन से लबरेज ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए रोज नए -नए हथकंडे अपना रहे है।  ग्राहक भी नौ दिन की तैयारी योजना बद्ध होकर कर रहे है। चार दिन ( सप्तमी ,अष्टमी ,नौमी ,दशमी ) क्या खाना ,क्या पहनना ,  कहा घूमना आदि।   जीएसटी का रोना रोते ( कुछ भी तो सस्ता नहीं है) ग्राहकों के मुंह का स्वाद  तब कसैला हो जा ता है जब उन्हें अपने बिल में अतिरिक्त कर जुड़ा दिखाई देता है। फिर भी उनके जोश में कोई कमी नहीं दिखती।  बंगाल की दुर्गा पूजा है ही ऐसी।  विभिन्न विषयों पर आधारित ,बेजोड़ कारीगरी से तराशे गए पंडाल, उत्कृष्ट कला को जीती प्रतिमाएं , अनेक  प्रकार के   रंगों एवं सुन्दर आकृतियों की छटा बिखेरती विद्युत् झालरे,  बरबस ही आने -जाने वालों का ध्यान आकर्षित कर लेती है।   किसका पंडाल ,किसकी मूर्ति ,किसकी विद्युत् सज्जा सर्वश्रेष्ठ है ये जानने के लिए बहुत से संगठन ,कम्पनिया, मिडिया पुरस्कार घोषित करती है।  सड़कों पर उमड़ती भीड़ रात की उपस्थिति को नकार देती है। बच्चें ,बड़े ,युवा सभी बेसब्री से इंतजार करते है इस त्यौहार का  किन्तु युवक -युवतियों की ख़ुशी की कोई सीमा नहीं होती क्योंकि इस दौरान उनकी घडी थम जाती है। नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते , लज्जा -मर्यादा  जैसी दकियानूसी सीमाओं को लांघते  स्वतंत्र ख्यालों वाले  युवक -युवतियां , बिना रोक -टोक देर रात तक डांडिया और दुर्गा पूजा का आनंद उठाते है।  एक बाईक पर तीन -चार लोगो का बैठ कर हुड़दंग मचाते हुए निकलते है  , लड़के -लड़कियों का समूह जहाँ -तहा खाता पीता ,घूमता दिखाई देता है। पाबंदी ,,भय ,अनुशासन सभी छुट्टी पर चले जाते है। ऐसे में आपराधिक तत्व भी सक्रिय हो जाते है।  गाड़ियों में बैठी महिलाओं पर अश्लील भद्दे फिकरे कसना , उनकी गाड़ियों का पीछा करना, कम उम्र की बच्चिंयों को छेड़ना उनका पसंदीदा गेम है हालाकिं पुलिस मुस्तैदी से तैनात रहती है परन्तु किस गली और नुक्कड़ पर ये सिरफिरे अपनी गन्दी योजनाओ को अंजाम देंगे ये किसे पता रहता है। आजकल ,टेक्सी ,बस ,ऑटो ,उबेर कुबेर किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता है अतः त्यौहार का मजा कही  किरकिरा न हो जाये इसलिए पहले से ही योजना बनाते समय इस बात पर अवश्य ध्यान दे की  आपकी सुरक्षा आपके हाथों में है।  














Tuesday, 29 August 2017

कोलकाता के अंतराष्ट्रीय  पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन के बुक स्टाल पर एक संगोष्ठी आयोजित की गयी " "क्या फेसबुक और व्हाट्सअप की दुनियां 
बच्चों को साहित्य से दूर ले जारही है ?" 

News in Prabhat Khabar Hindi dainik 





उर्दू न्यूज रीडर व सुरेंद्र नाथ कालेज की हिंदी प्रध्यापिका  नुसरतजहाँ ने अपने विचार रखते हुए कहा की व्हाट्सअप और फेसबुक फ़ास्ट जीवन शैली है जिसमे साहित्य के लिए कोई समय नहीं है।  स्मार्ट फोन के साथ युवा चाहते है दुनियां को मुट्ठी में कर लेना उनके पास जानकारी प्राप्त करने के लिए तमाम वेबसाइट है किन्तु विषय की गहराई में जाने का वक्त नहीं है उन्हें चार किताबों के नाम दिए जाये और कहा जाये की आप इन्हें पढ़ कर परीक्षा की  तैयारी कर लीजिये तो वे इसे समय की बर्बादी समझते है। आज की पीढ़ी के लिए साहित्य जरूरी नहीं है , न हीं वे समाज संस्कृति और इतिहास में रूचि रखते है।  अट्ठारह से तीस साल के युवाओं  का समय  फेसबुक में लाइक डिसलाइक  में चला जाता है।  बहुत सारे  ब्लाग्स है  लोग अपनी रूचि के अनुसार उन्हें पढ़ कर   कट -पेस्ट करते  है बिना तथ्यों को परखे  जो की कदापि सही नहीं है. 

रंगकर्मी सुधीर निगम के अनुसार आजकल के बच्चों ने अपने को  तकनिकी दुनियां में कैद कर लिया है
  वे इसके बाहर झांकना ही नहीं चाहते। 

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परिवर्तन 











Tuesday, 14 March 2017

महिला स्वालंबन ,आवश्यकता है मानसिकता में परिवर्तन की



उसकी आँखों से छलकते आंसू बता रहे थे की वो अंदर से कितनी दुखी है और दुखी हो भी क्यों न आखिर कौन सी औरत पूरा दिन खट कर कमाने के बाद अपनी सारी कमाई अपने पति को इस डर से सौप देंगी की अगर नहीं दिया तो  उसकी पिटाई लात जूतों से हो जाएगी।  ये एक दिन का भी किस्सा नहीं है कि  चलो इसे भुला दिया जाये । रोज ही शराब पीकर पत्नी को अपने पाँव  की जूती समझ कर उसे प्रताड़ित करना उसकी  दिनचर्या का हिस्सा है.  वो  भली -भांति जानता है की उसकी पत्नी  का साथ देने के लिए उसके  माता -पिता  हैं नहीं  और न ही  उसके पास आर्थिक  निर्भरता  क्योंकि पत्नी की पूरी कमाई पर उसका कब्ज़ा है .  इस परिस्थिति में उसे छोड़कर  वो कैसे जा सकती  है ,  उसके पास सर छुपाने के लिए कोई दूसरी छत है ही नहीं। छत एक  महिला  के लिए कितनी आवश्यक है ये वही बता सकती है जो उसके आभाव में मर -मर कर जी रही है।   ऐसी एक नहीं सैकड़ो महिलाये है जो समाज की नजर में अपने पैरो पर खड़ी   है किन्तु घर की चहारदीवारी में बेबस नारी है। नारी की मानसिक ,शारीरिक प्रताड़ना की  एक नहीं अनेको आपबीती है ,  कुछ लड़कियां सुबह पाँच बजे से रात के दस बजे तक कही फुल टाइम तो कही पार्ट टाइम कार्य करती है ताकि वो अपनी शादी के लिए कुछ रूपये इकट्ठे कर सके और  अपने सपनों में रंग भर सके उसके बाद भी उन्हें  अपने माता -पिता, भाई -बहनो  से सुनना पड़ता है कि  मेमसाहिबा के पास घर के कार्यो में हाथ बटाने का  समय ही नहीं है।    सैकड़ों लड़कियां ऐसी  भी है जो  अपने को आर्थिक निर्भर बनाने के लिए बसों ,लोकल ट्रेनों में लटक कर ,खड़े हो कर , मजनुओ के फिकरे सुनते हुए सफर करती है कभी मज़बूरी वश तो कभी अपनी मर्जी से जिंदगी जीने की इच्छा वश।  नारीसशक्तीकरण के दौर में हर लड़की की चाहत है की वो नौकरी करे।  नौकरी मिलने के बाद घर बसाना उसके बाद पति ,बच्चे उनकी जिम्मेदारियां। छोटे   बच्चे को आया के भरोसे छोड़कर  नौकरी करने वाली महिला भी कुंठाग्रस्त है की अगर वो नौकरी छोड़ देंगी तो उसे अपने पति और उसके घरवालों के रहमोकरम पर जीना होगा और अगर नौकरी जारी रखती है  तो उसके मासूम बच्चे के साथ उसकी पीठ पीछे आया क्या कर रही  होगी । अगर घर में सास- ससुर है तो बच्चों की तरफ से मुक्त रहती है किन्तु घर जाकर उनके लिए खाना भी पकाना है क्योंकि वे बाहर का बना खाना नहीं खाएंगे । नौकर रखती है तो ऑफिस से लौटने के बाद सास की दस शिकायते तैयार मिलती है। देर से आती है तो तानों की बौछार मिलती है।पत्नी या बहु का कार्य किसी को दिखाई नहीं देता उसकी थकान  , उसकी पीड़ा इससे किसी को कोई लेना देना नहीं क्योंकि घर के कार्य औरत ही करती है वो तो पुरुष कर नहीं सकता भले ही दोनों एक ही आफिस में एक ही पोस्ट पर कार्यरत   हो।  ये  कड़वी सच्चाई  निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के साथ अधिक जुडी है।       एक तरफ नारी को सशक्त बनाने के लिए आये दिन नए कानून ,नयी योजनाए तैयार होती है दूसरी तरफ पुरुष प्रधान मानसिकता ज्यों की त्यों रहती है।   औरतो की सफलता और  उन्हें सशक्त बनाने  लिए बने कानून का जब कभी कोई महिला दुरूपयोग करती है तो पुरुष समाज समस्त नारियों को एक ही लाठी से हाँकने लगते है बिना विचारे की आज भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा को पूर्ण रूप से रोका नहीं जा सका ,दहेज प्रथा अभी भी कितनी कोमल नारियों को शारीरिक मानसिक कष्ट दे रही  है उन्हें अग्नि के हवाले कर रही है।   जो भी हो नारी सशक्तिकरण की दौड़ में रोबोट बनी महिला तब तक सुखी नहीं हो सकती जब तक की बेटो को पुरुष के झूठे अहम् से बाहर नही निकालती उन्हें ये नही सिखाती की उसकी पत्नी भी एक इंसान है वो भी बाहर काम करके थक जाती होगी।  घर के छोटे -मोटे कामों में मदद करना सम्मान के विरुद्ध नहीं है क्योंकि घर उनका भी उतना ही है जितना की पत्नी का। जिस दिन स्त्री -पुरुष की सोच में बदलाव आ जायेगा उसी दिन समाज भी परिवर्तित हो जायेगा. 



Tuesday, 28 February 2017

शादी और बच्चे महिला सशक्तिकरण में बाधक ? " .

               गंभीर ज्वलंत समस्या पर एक सारगर्भित संगोष्ठी 'द  वेक' हिंदी मासिक पत्रिका व ताजा चैनल के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित की गयी।   डॉ.  सूफिया यास्मीन ( प्रोफेसर )  कहा कि  सुश्री निवेदिता प्रसाद , ( डिप्टी कमिशनर इन्कमटेक्स ) डॉ. शिवली मुख़र्जी ( टेस्टट्यूब बेबी एक्सपर्ट ) डॉ. मंजुला सिंह ( प्रतिष्ठित समाज सेवी)  सुवसमिता डे ( क्रिमनल लॉयर ) आशीष बसाक (फिल्म मेकर ) विशम्भर नेवर ( डायरेक्टर ताजा चैनेल ) डॉ. करुणा पण्डे , लेखिका , अपनी और से सार्थक पहल करते हुए इस मुद्दे पर रौशनी डालने की कोशिश की।  

प्रसन्न मुद्रा में वक्ता 

प्रोफेसर सूफिया यास्मीन के अनुसार लोकल ट्रैन में सब्जी,फल, बेचने वाली महिलाये इस लिए काम करती है क्योकि उन्हें अपने शराबी पति को पैसे देने पड़ते है दारू पीने के लिए।  घर चलाने से लेकर बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी इन्ही महिलाओं के ऊपर होती है।  ऐसे पुरुष जो दारू पीकर मार -पीट करे तो कौन महिला चाहेगी की वो अपने पति के साथ रहे। यही नहीं ऐसी बहुत सी शिक्षकाएं है जो कालेज आने के पहले ससुराल वालो के लिए खाना बना कर आती है क्योंकि उनके सास-ससुर को बाहर का खाना  पसंद नहीं है और कालेज से घर वापस जाकर बच्चों को ट्यूशन के लिए लेकर जाती है।  अगर कभी  नैक का कालेज विजिट रविवार को  पड़ जाता है तो हम शिक्षकाओं को कालेज जाना पड़ता है ऐसे में ससुराल वाले ताना मारते है की ऐसा कौनसा कालेज है जो रविवार के दिन भी खुलता है।   मशीन बनी ये महिलाये शादी करके पछता  रही है। 


  • निवेदिता प्रसाद , इनकम टैक्स  कमिशनर , हमारे समाज में शादी आवश्यक है ऐसा सब मानते है क्योंकि सबको लगता है अगर शादी नहीं हुयी तो आपकी जिंदगी का कोई मतलब ही नहीं है।  कैरियर को दूसरे नंबर पर रखा जाता है।  लड़की के पैदा होते  ही शादी करनी है का राग अलापना आरम्भ हो जाता है जबकि शादी महिलाओं को असुरक्षा वाला माहौल देती है अपमान ,डांट -फटकार  मारपीट ,आदि।   शादी के बाद बहुत कम महिलाये ही निर्णय ले पाती इसलिए नहीं की उनमे क्षमता नहीं है बल्कि इसलिए की उन्हें अहमियत ही नहीं दी जाती किसी भी विषय में अपनी राय देने की।  देखा जाये तो उनके व्यक्तित्व को एक तरीके से ख़त्म कर दिया जाता है। उसी जगह लड़के को बचपन से ही नौकरी करनी है कह के प्रोत्साहित किया जाता है। ज्यादा पढ़ी -लिखी लड़कियों के साथ शादी करना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें वे दबा कर नहीं रख सकते। परिवार और बच्चो की देख -रेख के कारण अच्छे जॉब वाली महिलाये भी तरक्की के अच्छे अवसर हाथ से जाने देती है क्योंकि वे इतना समय नहीं दे सकती। 

  • डॉ. मंजुला सिंह , दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर के रूप में शुरुआत की , अठ्ठाइस वर्षो से शादी शुदा हूँ और  अब तक आठ नौकरी छोड़ चुकी हूँ मुझे कभी नहीं लगा की शादी  महिला  सशक्तिकरण में बाधा है क्योंकि ये आप पर निर्भर करता है की जिसे आप जीवन साथी बना रही है वो कैसा है। आपकी सोच के अनुसार है या सोच के विपरीत। दूसरी अहम् बात की  प्रजनन एक महिला ही कर सकती है अतः ये उसे ही तय करना है की वो बच्चें कब पैदा करे और उन्हें कैसा माहौल दे । वो बच्चे को जैसा माहौल देगी वे वैसे ही होंगे  अगर घर में मारपीट का माहौल है तो वे यही आगे भी करेंगे क्योंकि उनके लिए जीवन ऐसे ही जिया जाता है। सबसे पहले सोच की बेडिंया काटे और घर के पुरुषों को पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता से निका ले। शादी करने का मतलब ये बिलकुल नहीं की महिला ही समस्त कार्य करे पुरुष को भी हाथ बटाना चाहिए।
  • आशीष बसाक ,फिल्म निर्देशक , लड़कियों को चुनना होगा की वे शादी चाहती है या कॅरियर।  क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री में जब तक हीरोइन शादी नहीं करती तब तक उसका कॅरियर ठीक रहता है जैसे ही शादी करलेती है उसका कॅरियर ढलान पर चला जाता है।  इसका मतलब ये बिलकुल नहीं की शादी न की जाये।  अधिकतर लडकिया शादी ही करती है क्योकि सभी महत्वकांक्षी नहीं होती लेकिन जो जिंदगी में कुछ हासिल करना चाहती पहले वे अपने लक्ष्य को हासिल करे तत्पश्चात शादी करे क्योंकि शादी मतलब जिम्मेदारी. 



  • सुवसमिता डे ,आपराधिक वकील , पुरुष प्रधान समाज ही महिलाओं का शोषण करते है ,वे  बर्दाश्त नही करते की उनकी बीबी  उनसे  आगे निकल जाये। क्योंकि उनकी परवरिश ही इसी प्रकार से होती है।  उन्हें समझाया जाता है की अगर बीबी उनसे ज्यादा योग्य होगी तो वो तुम्हारी गुलामी नहीं करेगी। जरुरत है हमारे समाज में बेटे -बेटी के प्रति अलग -अलग बनी हुयी मानसिकता को  बदलने की।  हमारे समाज में छोटी सी छोटी बात के लिए भी बेटे से या पति से पूछा जाता है घर की धुरी पुरुष के ही चारो तरफ घूमती है क्योंकि वो कमाता है जबकि उसी जगह महिला अपना परिवार समझ कर मशीन की तरह से कार्य करती है।  जो महिलाये अपने दम पर कुछ करती है तो उनके बारे में गलत धारणा बना ली जाती है।  जैसे की मैं क्रिमिनल वकील हूँ तो सबको  लगता है की इसका तो पुलिस वालो के साथ उठना बैठना होता है तो जरूर चरित्र ख़राब होगा। उनकी सोच की अगर हम परवाह करेगे तो आगे कैसे बढेंगे सबसे पहले सशक्तिकरण हमारे अंदर होना चाहिए। बहुत सी महिलाये अपने पति की मार इस लिए  खाती  है की अगर उनका पति उन्हें छोड़ देंगा तो वो कैसे रहेगी। सुरक्षा  के लिए एक मर्द तो साथ चाहिए. लेकिन वे ये भूल जाती है की बच्चे जो हिंसा देख रहे है कल को यही  हिंसा उन्हें स्वस्थ जीवन  जीने नहीं देगी। लोग अक्सर दोष देते है की महिलाये 498 का गलत फायदा उठा रही है तो सीधी सी बात है  अगर किसी को मिर्ची का पाउडर दे दे तो ये उसपर निर्भर करेगा की वो खाने में डाले या आँख में।
  • विशम्भर नेवर, डायरेक्टर ताजा चैनल , युधिष्ठर जब निराश होकर संन्यास लेने लगे तो वहां  उपस्थित सन्यासी ने कहा की " सन्यास लेना कायरता है सच्चा मनुष्य वही है जो जीवन में उपजी समस्याओं को सुलझाए. " जिस तरह एक सिक्के को दो पहलु होते है उसी प्रकार प्रत्येक बात के भी दो पहलु होते है।  डिवोर्स आया सभी ने कहा की बहुत गलत है लेकिन ये नही सोचा की महिलाओं पर शादी के बाद कितने अत्याचार होते थे।  ऐसे ही राजस्थान में पहले हवेलियां हुआ करती थी उन हवेलियों में एक कमरा गन्दा रखा जाता था जिसकी साफ -सफाई कभी होती ही नहीं थी क्योंकि वहां महिलाओं का प्रसव करवाया जाता था और वो प्रसव दइया करवाती थी।  जब डाक्टरो द्वारा प्रसव कराया जाने लगा तो लोगो ने बड़ी आलोचना की।  पुरुष को लगता है की औरत को बच्चा चाहिए औरत को लगता है बिना बच्चे के वो पूर्ण नहीं है उसकी इस कमजोरी का वो शोषण करता है समस्याएं बाहर से नहीं आयी है वरन वे हमारे बीच से ही उत्पन्न हुयी है इसलिए इनका समाधान हमें ही निकलना है।  परिवार कभी बाधा नहीं होता बाधा उस परिवार की सोच हो सकती है। जब कभी समाज में परिवर्तन आता है तो आलोचनाएं -समालोचनाएँ होती ही है धीरे -धीरे सभी इसके आदि हो जाते है।
  • डॉ. शिवली मुखर्जी , अपनी  डिग्रियों को लेने के लिए हमे बहुत मेहनत करनी पड़ी किन्तु मेरी मम्मी ने मेरी डिग्री देखते ही हाथ खड़े कर दिए की तुम्हारे लिए मैं लड़का नहीं खोज सकती मैंने सोचा चलो मैं ही देखती हूँ अपने स्तर के अनुसार एक जगह बात भी बनी किन्तु जब लड़के के माता - पिता ने देखा तो उन्हें लगा की ये लड़की कम लड़का ज्यादा है।  मुझे भी लगा की शादी कही न कही मेरे लिए बंधन साबित होने वाली है इसलिए अपने प्रोफेशन को बनाये रखने के लिए मैंने शादी का इरादा छोड़ दिया। दूसरी बात जो  मेरे दिल में दर्द बन कर बस गई थी वो ये थी की मेरी माँ शादी से पहले बहुत अच्छा गाती थी  और शादी के बाद उन की हॉबी ने घर -गृहस्थी के चलते दम तोड़ दिया। सरोगेसी और टेस्टट्यूब बेबी पैदा करवाना मेरा पेशा है। मैंने अक्सर देखा है की बच्चा हमेशा महिला चाहती है वही बच्चे के लिए आती है और बच्चे का सारा खर्च  लड़की के माता- पिता उठाते है कभी भी लड़के के परिवार वाले पहल नहीं करते।  इस लिए मेरा मानना है की शादी और कैरियर में से किसी एक को ही चुना जा सकता है अतः ये महिला पर ही निर्भर करता है की वो क्या चाहती है 
शकुन त्रिवेदी ,संपादक 'द  वेक' हिंदी मासिक पत्रिका विशम्भर नेवर डायरेक्टर ताजा चैनल , 

शुभ्र त्रिवेदी गाना गाती हुयी 

DR. SHIULI MUKHERJEE WITH DR. KARUNA PANDE WRITER.

SUVASMITA DE (ADVOCATE) WITH RICHA TRIVEDI

च ये है की नारी के हिस्से में आज भी चुभन, टूटन, तड़पन, और बिखरन है।  वो बच्चे को आया के सहारे छोड़ कर जाती है तो भी कुंठा ग्रस्त होती है।  घर की चहारदीवारी में कैद होकर श्रीमती और मम्मी के रूप में  अपनी पहचान उनके नाम से बना कर भी खोखली ही रहती है। उनके सामने विकल्प के रूप में कुछ भी नहीं है या तो वे कॅरियर चुने या शादी।  दोनों के साथ जीवन यापन करना महिला को रोबोट बना देता है ऐसी स्थिति में इस समस्या का हल  क्या है क्या होना चाहिए , आवश्यकता है इस पर गंभीरता के साथ विचार करने की क्योंकि शादी के बिना  भी महिलाये   अधूरी है और शादी कर के भी बहुत सी महिलाएं बिखरी हुयी है। इस कार्यक्रम का सञ्चालन 'द वेक' हिंदी मासिक पत्रिका की संपादक शकुन त्रिवेदी ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम् भूमिका निभाई शुभ्रा त्रिवेदी, राजेश मिश्रा  जैस्मिन खान .