Tuesday, 9 October 2012

Women empowerment hurts male ego ?

"महिला आत्मनिर्भरता क्या पुरुषो को रास  नहीं आती "
इस विषय पर बी डी मेमोरियल इंटर्नेशनल स्कूल में एक संगोष्ठी 'द वेक ' हिंदी मासिक पत्रिका द्वारा  आयोजित की गयी जिसमे  बच्चों एवं शिक्षको ने अपने -अपने विचार व्यक्त किये।



कार्यक्रम का  संचालन करते बच्चें 

निर्णायक की भूमिका में
 'द वेक' की संवादाता शुभ्रा त्रिवेदी एवं अमिता पुरोहित 

बीडी मेमोरियल की डायरेक्टर श्रीमती उषा मेहता
बच्चों को संबोधित करते हुए .

सेकंड प्राईज देती हुयी अमिता पुरोहित 

प्रथम पुरस्कार देते हुए समपादक शकुन त्रिवेदी 

 
प्रथम & द्वितीय पुरस्कार विजेताओ  के साथ
 'द वेक के समाचार संपादक  राजेश मिश्र  एवम  अमिता पुरोहित 






शकुन त्रिवेदी संपादक 'द वेक' समाचार संपादक राजेश मिश्र
&
अमिता पुरोहित 

Wednesday, 29 August 2012

Ganga, fights against pollution

Enlightening Event.4th July 2012.
'द  वेक ' हिंदी मासिक पत्रिका की तरफ से गंगा प्रदुषण के खिलाफ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया । इस कार्यक्रम के अंतर्गत एक नृत्य प्रतियोगिता रखी गयी जिसमे विभिन्न स्कूलों के बच्चों ने गंगा पर आधारित गानों पर अपने मनमोहक नृत्य प्रस्तृत कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया .
मेहमानों का स्वागत करते 'द वेक' टीम का सदस्य सागर मिश्र 
बीडी मेमोरियल इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट की डायरेक्टर उषा मेहता
का सम्मान करती  संपादक शकुन त्रिवेदी 
'राम तेरी गंगा मैली हो गयी ' गाने पर नृत्य करती लड़की 
'हमरी जेब में दो ही रुपैया' गाने पर डांस करती बच्चियां 

 प्रदुषण  से त्रस्त ,द्रवित ,क्रोध की विभिषका में जलती गंगा बन 
सशक्त तांडव नृत्य का प्रदर्शन किया
'द वेक' पत्रिका टीम की फोटोग्राफर  शुभ्रा त्रिवेदी ने .
अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ,72 वर्ष के वृद्ध रंजित मल्होत्रा  
नाच मयूरी नाच गाने पर नृत्य करते हुए
.
आकाशवाणी  कोलकता  के सीनियर अनाउंसर अनिल कुमार ,
इस कार्यक्रम  के जज,  परिणाम घोषित करते हुए .
नृत्य के विभिन्न रूपों का आनंद लेते नेपाल कांसुलेट चन्द्र कुमार घिमिरे
एवं
  ताजा  चेनल के  डायरेक्टर विशम्भर नेवर 

प्रथम पुरस्कार 'सारा अम्बर सारी  धरती गंगा जी के नाम '
इस गीत पर नृत्य करने वाले मृणालिनी   ग्रुप ' को मिला 

नेपाल कन्सुलेट चन्द्र कुमार घिमिरे "धवल ग्रुप "को तृतीय पुरस्कार  देते हुए 

लोकप्रिय असमियाँ  गायक भूपेन हजारिका के गाने 'गंगा बहती है क्यों '
  पर सतरंगी ग्रुप  ने प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार  जीता  .


रंजित मल्होत्रा को सम्मानित करते हुए  नेपाल कन्सुलेट चन्द्र कुमार घिमिरे 
पूर्व डायरेक्टर आफ पोलिस आर के हंडा , नेपाल कन्सुलेट चन्द्र कुमार घिमिरे
ओडिशी नृत्यांगना सुधा दत्त संपादक शकुन त्रिवेदी सामूहिक चित्र में .
  


Monday, 2 April 2012

TALENT HUNT BY 'THE WAKE'

'THE WAKE' HINDI MONTHLY DECIDED TO BRING OUT TALENTED CHILDREN FROM  LOWER CLASS .

Group photo 

Amrita purohit felicitated with flower by little Afrin.
Shashi Shukla felicitated by Abhishek ( basti child) 
Firdaus Lodhi Riyaz with little Ritik 
Riki with Little Samiksha 
Sujit Gupata with little Mahi 
Editor ( THE WAKE MAGAZINE) Shakun Trivedi.




Little contestant.
This pretty small girl stood first in dance competition.
This girl stood second in dance competition.
children enjoying photo session with their  certificate.

Monday, 13 February 2012

A group discussion in Bidhuna (Etawah )UP.

 'क्या महिलाओ  की प्रगति अलगाव का कारण बन रही  है या अधिकार की आवाज' ?विषयक पर बिधुना ,(जिला औरैया) में भुवनेश्वर नाथ जी मिश्र के आवास पर कोलकाता से निकलने वाली  'द वेक' हिंदी मासिक पत्रिका की संपादक शकुन त्रिवेदी की तरफ से 
   एक विचार गोष्ठी  का आयोजन किया गया ,जिसमे विभिन्न क्षेत्रो से आये प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने अपनी भागीदारी निभाते हुए  विचार व्यक्त किये .

सुभाष चन्द्र त्रिपाठी ,
दहेज़ भी एक बहुत बड़ा कारण है तलाक का .अगर बहु दहेज़ में काफी सामान लेकर आती है तो वो परिवार वालो का सम्मान कम करती है .क्योकि बात -बात में वो अपने मायके और ससुराल के स्तर की तुलना करेगी जिसका असर पारिवारिक संबंधो पर पड़ना ही है.आजकल की महिलाये संसकारित कम स्वछंद ज्यादा हो गयी है.
अविनिश गुप्ता ,सुभाष त्रिपाठी                        
अविनीश गुप्ता ,प्रवक्ता जयहिंद 
भारत एक पुरुष प्रधान देश है ,जिसमे महिलाये हमेशा दबा कर रखी गयी है. आज  की महिलाये शिक्षित है,वे चाहती है की पुरुष उनकी  भावनाओ को  समझे और उन्हें   सम्मान दे .वे अपने साथ किये गए अन्याय का विरोध करना जानती है.तलाक के रूप में उसका कदम  अन्याय के विरुद्ध सर उठाना है.
विवेक कुमार गुप्ता ,
बहुत बार महिलाओ का शोषण उसकी ससुराल वाले करते है.जिसमे अक्सर बेटे मूक रहकर या अपने परिवार का साथ रह कर उस अत्याचार में साथ देते है.उनकी ज्यादतियों से तंग आ कर  भुत बार पत्निया तलाक की और मुख कर लेती है. कई बार ऐसा भी होता है की कोई -कोई महिला का पहले से ही किसी के साथ सम्बन्ध होता है और परिवार वाले जबरदस्ती शादी कर देते है ,तब वे ४९८ का  सहारा लेती है. और निरपराध पति को जेल भिजवा देती है. बहुत बार लड़की के मायके वाले भी जरा  सी बात को तूल  दे देते है.जो बिखराव का कारण बन जाता है.
अमर सेन मिश्र ,
जिस तरह शारीर के प्रत्येक अंग का अपने  अपने स्थान पर  महत्त्व है. उसी तरह से पति -पत्नी के रिश्ते और उनके दायित्वों की भी महत्वता है. अगर चोट पैर में लगेगी तो दर्द शरीर में होगा वैसे ही अगर वैवाहिक जीवन जिद्द और अहम् के चलते टूटेगा तो तकलीफ बच्चो को होगी. ये आज की युवा पीढ़ी भूल रही है. जिस प्रकार साईकिल का अगला पहिया जिधर मुड़ता है उधर ही पिछला पहिया मुड जाता है .अगर दोनों पहिये अलग अलग दिशा में मुडेगे तो साईकिल का गिरना निश्चित है .ऐसी ही विचारधारा और समझ दाम्पत्य जीवन में होनी चाहिए .
विजय शक्ति ,
पाश्चात्य सभ्यता का बोलबाला जबसे बढ़ा है तब से ही तलाक का प्रचलन चला है.आज के दौर में हर लड़का व् लड़की की चाहत होती है सारी भौतिक सुख सुविधाओ को भोगना इसके लिए दोनों ही काम करेंगे जब दोनों काम करंगे तो घर कौन सम्हालेगा .दोनों में से कोई झुकना ही नहीं चाहेगा तो घर  टूटेगा ही .सच ये है की स्त्री पुरुष दोनों ही अपने को ज्यादा आधुनिक दिखाने के कारण समझौते कम कर  रहे   है.लडकियों को भी मायके वाले संस्कार कम दे रहे है अहम् की परिभाषा ज्यादा सिखा रहे है.वे उन्हें ये समझाने के बजाय की घर बिखरेगा तो तकलीफ तुम्हे भी उतनी ही होगी जितनी की लड़के को .वो उसे समझौता न करने की सलाह दे रहे है.
     मनोज त्रिवेदी ,विजय शक्ति ,अमर सेन मिश्र                              
मनोज त्रिवेदी,
पूरा विश्व पुरुष प्रधान देश है . अमेरिका में आज तक महिला राष्ट्रपति नहीं बनी .भारत तो उस हिसाब से काफी  आगे है.तलाक हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है. क्योकि   पहले हिन्दुओ में भी तीन -चार शादी होती थी लेकिन सब साथ  रहा करते थे कभी कोई शिकायत नहीं होती .दूसरी बात की  हमारे  यहाँ बड़े -बुजुर्ग की जिम्मेदारी होती थी घर को बचाने की अपने बच्चो के मतभेदों को दूर करने की .लेकिन आज सभी मालिक है. कोई किसी से सलाह नहीं लेना चाहता न ही किसी की बात को सुनना . शादियाँ पहले परिवार देख कर होती थी लेकिन आज लड़की देख कर होती है. आप  कामकाजी लड़की  के साथ शादी करेंगे  और उससे   घर सम्हालने की उम्मीद करेंगे   जो की संभव नहीं है. ये भी एक कारण है अलगाव का .
रंजीत सिंह सोलंकी , लेखक ,पेंटर ,कवि 
 पाश्चात्य  सभ्यता का संस्कारो पर हावी होना ,और फिर  आँख बंद कर उनका अनुसरण करना  बिना  विचारे   की इसके नुकसान और फायदे क्या है ..दूसरा बड़ा कारण एक स्त्री का दूसरी स्त्री का दुश्मन होना सास ननद का ताने देना की बेटा अब बीबी का गुलाम बन गया है .बात -बात में उसे  नीचा दिखाना और पति का चुपचाप रहना पत्नी को पसंद नहीं आता ऐसी छोटी बाते ही तलाक को जन्म देती है.
  अनुराधा सोलंकी
एक दुसरे के विचार का न मिलना एवं शक की उत्पत्ति भी तलाक का कारण बनता है.अगर पति हर समय कामकाजी पत्नी से ही अपेक्षा करेगा की वो बाहर और घर का काम वैसे ही करे जैसे की एक गृहणी को करना चाहिए तो तलाक होना  निश्चित है.
            
                               सम्पादक शकुन त्रिवेदी  के साथ शिखा  

  
शिखा  छात्र 
पुरुष हर समय स्त्री को दोष देता है.की वो सामंजस्य नहीं बिठाना चाहती ,जबकि बहुत बार तलाक का कारण पुरुष की शारीरिक अक्षमता बनती है. पुराने समय में महिलाये छोटी -बड़ी कमी को बदनामी के भय से दबा देती थी .पति का हद से अधिक मारना भी पत्नी को तलाक लेने के लिए विवश कर देता है.  बदलते समय ने महिलाओ को अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखा दिया है.

विनीत त्रिपाठी ,
ईश्वर ने हर किसी को एक विशिष्ट योग्यता के साथ पृथ्वी पर भेजा है.उसी योग्यता को ध्यान में रखकर हम सभी को अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए .ममत्व का अद्भुत गुण नारी जाती को दिया गया है.वही बच्चे को जन्म देती है. उसका पालन पोषण भी सही तरीके से वही कर सकती है अगर पुरुष बच्चे को सम्हालेगा तो बच्चे को मानसिक शांति नहीं मिलेगी .इस लिए अगर कोई महिला ये सोचती है की बच्चे को पालने की जिम्मेदारी पति भी उतनी ही निभाए जितना की वह निभाती है तो गलत है. क्योकि पुरुष के पास वो क्षमता ही नहीं है जो नारी के पास है बच्चे को प्यार से सुलाने की .उसकी तकलीफों को समझने की .  बदलते समय के अनुरूप पत्नियों की सोच बदल रही है जो  आजकल तलाक का कारण बन रही है.
राजकुमार पण्डे ,
तलाक की घटनाये महिलाओ के विकास के कारण नहीं वरन आर्थिक स्थिति ,बच्चो की मांग ,घर की जरुरतो का पूरा न हो पाना  आदि के कारण ज्यादा हो रही है.लड़की या लड़के की माँ का बीच में आना भी तलाक का कारण बनता है.पुरुष आज भी महिलाओ का शोषण कर रहा है .शिक्षित महिलाओ ने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी उसी का परिणाम तलाक के रूप में नजर आ रहा है.
अखिलेश त्रिपाठी ,
पहले लडकिया गुलामी में पली ,उनसे सही -  गलत जैसा भी करने को कहा गया उन्होंने वैसा ही किया लेकिन आज की लड़की शिक्षित है.,अच्छी नौकरी करती है .बढ़िया पगार पाती है. किन्तु अगर उसने पति से पानी मांग दिया तो पति का मिजाज गरम हो जायेगा.वो ये समझने की कोशिश ही नहीं करेंगा की वो भी एक इन्सान है उसे भी आराम की आवश्यकता है वो आफिस से वापस आकर खाना बना पायेगी या नही इसे पुरुष समझना नहीं चाहता जिसके कारण आये दिन दोनों में टकराव होता रहता है.जो आगे जाकर दोनों के लिए अलग -अलग मार्ग तय करता है.
भुवनेश्वर नाथ मिश्र, 
अवकाश प्राप्त,विभागाध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग, जे,ऍन. कालेज बांदा उत्तर प्रदेश )
शेक्सपियर ने अपने ड्रामा में लिखा भी है की प्रत्येक  पुरुष अपनी पत्नी का गुलाम है. इसमें कुछ भी नया नहीं है.जो कहा जाये की आजकल इस तरह की बाते हो रही है पहले भी होती थी.लेकिन बदलते वातावरण में इसको नये सन्दर्भ में देखा जा रहा है.और बहुत बार इस तरह के ताने पारिवारिक विघटन का कारण बन रहे है. जिसका मुख्य कारण अपने देशी मार्ग से हट जाना,ऋषि मुनि की दी हुयी शिक्षा व संस्कृति को भुला देना .और आधुनिकता के नाम पर अपने -अपने अहंकार को पोषित करना .पहले पुरुष के पास अहम् होता था आज शिक्षित महिलाये भी अपने पद अपनी आमदनी को प्रतिष्ठा के रूप में आंक रही है.तथा पुरुषो से अपेक्षा कर रही है की वे भी घर का उतना ही दायित्व सम्हाले जितना की पत्नी सम्हालती है.यही से टकराव आरम्भ हो जाता है .क्योकि पुरुष कमाऊ पत्नी तो चाहता है. लेकिन घर पर सहयोग करने में उसे अपमान महसूस होता है .वो बाहर से आयेगा तो यही उम्मीद करेगा की पत्नी उसे चाय बना कर दे.सामंजस्य व् समझौते की भावना ख़त्म हो रही है अहम् बढ़ रहा है जो अलगाव की मुख्य वजह बन रहा है.