Tuesday 29 August 2017

कोलकाता के अंतराष्ट्रीय  पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन के बुक स्टाल पर एक संगोष्ठी आयोजित की गयी " "क्या फेसबुक और व्हाट्सअप की दुनियां 
बच्चों को साहित्य से दूर ले जारही है ?" 

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उर्दू न्यूज रीडर व सुरेंद्र नाथ कालेज की हिंदी प्रध्यापिका  नुसरतजहाँ ने अपने विचार रखते हुए कहा की व्हाट्सअप और फेसबुक फ़ास्ट जीवन शैली है जिसमे साहित्य के लिए कोई समय नहीं है।  स्मार्ट फोन के साथ युवा चाहते है दुनियां को मुट्ठी में कर लेना उनके पास जानकारी प्राप्त करने के लिए तमाम वेबसाइट है किन्तु विषय की गहराई में जाने का वक्त नहीं है उन्हें चार किताबों के नाम दिए जाये और कहा जाये की आप इन्हें पढ़ कर परीक्षा की  तैयारी कर लीजिये तो वे इसे समय की बर्बादी समझते है। आज की पीढ़ी के लिए साहित्य जरूरी नहीं है , न हीं वे समाज संस्कृति और इतिहास में रूचि रखते है।  अट्ठारह से तीस साल के युवाओं  का समय  फेसबुक में लाइक डिसलाइक  में चला जाता है।  बहुत सारे  ब्लाग्स है  लोग अपनी रूचि के अनुसार उन्हें पढ़ कर   कट -पेस्ट करते  है बिना तथ्यों को परखे  जो की कदापि सही नहीं है. 

रंगकर्मी सुधीर निगम के अनुसार आजकल के बच्चों ने अपने को  तकनिकी दुनियां में कैद कर लिया है
  वे इसके बाहर झांकना ही नहीं चाहते। 

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